कबीर साहेब की लीलाएं

कबीर साहेब द्वारा की गई लीला

आज हम आपको कबीर साहेब जी ने किन-किन को शरण में लिए हैं उनके  बारे में बताएँगे । कबीर साहेब लगभग आज से 600 साल पहले इस धरती पर आये और बहुत सी पुण्यात्माओं को अपनी शरण में करके चले गए। कबीर साहेब के शिष्यों का जिक्र कबीर सागर में भी मिलता है। कबीर साहेब के 64 लाख शिष्य को अपनी शरण में लिए थे, यह आपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। तो चलिए आज हम आपको कबीर साहेब ने क्या-क्या  लीलाएं की उनके  बारे में बताते हैं।
                             
                          

संत गरीबदास जी को शरण में लेना

                                               आदरणीय गरीब दास साहेब जी का आविर्भाव सन 1717 में हुआ तथा साहेब कबीर जी के दर्शन दस वर्ष की आयु में सन 1727 में नला नमक खेत में हुआ तथा सतलोक वास सन 1778 में हुआ ।आदरणीय गरीब दास साहेब जी को कबीर साहेब जी सशरीर जिन्दा रूप में  मिले ।
           
                    



आदरणीय गरीब दास साहेब जी अपने नला नमक खेतो में अपने अन्य साथी गवालो  के साथ गाय चारा रहे थे । जो खेत कबलाना गांव की सीमा से सटा हुआ हैं । ग्वालो ने जिन्दा महात्मा के रूप में प्रकट कबीर परमेश्वर  से आग्रह किया की आप खाना नहीं खाते हो तोह दूध ग्रहण करो क्योंकि परमात्मा ने कहा था की मैं अपने सतलोक गांव से खाना खा कर आया हूँ । तब कबीर परमेश्वर जी ने कहा की मैं कुंवारी गाय का दूध पिता हूँ।बालक गरीब दास जी ने एक कुंवारी गाय को परमेश्वर कबीर जी के पास लाकर कहा की बाबाजी यह कावरी गाय कैसे दूध दे सकती हैं? तब  कबीर परमेश्वर ने कुंवारी गाय अर्थात बछिया के कमर पर हाथ रखा, अपने आप कुंवारी गाय के थानो से दूध निकलने लगा, पात्र भरने पर रुक गया। वह दूध कबीर परमेश्वर जी ने पिया तथा प्रसाद रूप में कुछ अपने बच्चे गरीब दास को पिलाया तथा सतलोक के दर्शन कराये ।उसके बाद उस पूर्ण परमात्मा की आखों देखा विवरण अपनी अमृत वाणी में "सद्ग्रन्थ" नाम से ग्रन्थ की रचना की ।उसी अमृत वाणी में प्रमाण -
              अजब नगर में ले गया,  हमको सतगुरु आन ।।
                    झिल्के बिम्ब अगाध गति, सुते चादर तान ।।
         अनंत कोटि ब्रह्माण्ड का, एक रति नहीं भर ।
                   सतगुरु पुरुष कबीर हैं, कुल के सृजन हर ।।

धर्म दास जी को शरण में लेना

                                      आदरणीय धर्म दास साहेब जी, बांधवगढ़  मध्य प्रदेश वाले, जिनको पूर्ण परमात्मा जिन्दा महात्मा के रूप में मिले, सतलोक दिखाया । वहा सतलोक के दो रूप दिखा कार जिन्दा वाले रूप में पूर्ण परमात्मा वाले सिंघासन पर विराजमान हो गए तथा आदरणीय धर्मदास साहेब जी को कहा कि मैं ही कशी (बनारस ) में निरु नीमा के घर गया हुआ हूँ ।

               
 

 वहा धानक (जुलाहा )का कार्य करता हूँ, आदरणीय श्री रामानंद जी मेरे गुरूजी जय । यह कह कार श्री धर्म दास कि कि आत्मा को वापस शरीर में भेज दिया । श्री धर्मदास जी का शरीर दो दिन बेहोश रहा, तीसरे दिन  होश आया तो कशी में खोज करने पर पाया कि यहां कशी में आया धानक ही पूर्ण परमात्मा (सत पुरुष ) हैं। आदरणीय धर्म दास साहेब जी ने पवित्र कबीर सागर, कबीर सखी, कबीर बीजक नमक सदग्रंथो किस आखों देखा तथा पूर्ण परमात्मा के पवित्र मुख कमाल से निकले अमृत वचन रूपी विवरण से रचना कि हैं।

दादू साहेब जी को शरण में लेना

                                             आदरणीय दादू साहेब जी जब सात वर्ष के बालक थे तब पूर्ण परमात्मा जिन्दा महात्मा के रूप में मिले तथा सत्यलोक ले गए । तीन दिन तक दादू जी बेहोश रहे होश में आने के पश्चात परमेश्वर किस महिमा किस आखों देखि बहुत सी अमृत वाणी उच्चारण की हैं
    जिन मोकु निज नाम दिया, सोइ सतगुरु हमार ।
                 दादू दूसरा कोइ नहीं, कबीर सृजन हर ।।
          दादू नाम कबीर किस, जै कोइ लेवे औट ।
                  उनको कबहु लगे नहीं, काल बज किस चोट ।।
    
               

           दादू नाम कबीर का, सुन कार कापे काल ।
                  नाम भरोसे जो ना चले , होवें ना बांका बाल ।।
             जो जो शरण कबीर के,  तार गए अनंत अपार ।
                         दादू गुण किता कहे, कहत ना आवे पार ।।
            और संत सब कूप हैं, केते झरीता नीर ।
                       दादू आगम अपार हैं, दरिया सत्य कबीर ।।

कबीर साहेब द्वारा सर्वानन्द को शरण में लेना

                                                              पंडित सर्वानन्द ने अपनी माँ से कहा की मैंने सभी ऋषियों को शास्त्रों में हरा दिया हैं तो मेरा नाम सर्वाजीत रख दो लेकिन उनकी माँ ने सर्वानन्द से कहा की पहले आप कबीर साहेब को शास्त्रों में हरा दो तब आपका नाम सर्वाजीत रख दिया जायेगा । जब सर्वानन्द कबीर साहेब के पास शास्त्रर्थ करने पंहुचा तो कबीर साहेब ने कहा की आप तोह वेद-शास्त्रों के ज्ञाता हैं मैं आपसे शास्त्रर्थ नहीं कार सकता ।
      
                     

 तब सर्वानन्द ने एक पत्र लिखा की शास्त्रर्थ में  सर्वानन्द जीत गए और कबीर साहेब हार गए  । उस पर कबीर साहेब जी से अंगूठा लगवा लिया । लेकिन जैसे ही सर्वानन्द अपनी मा के पास जाते तो अक्षर बदल कर कबीर जी जीते और पंडित सर्वानन्द हार गए हो जाते ।यह देख कार सर्वानन्द आश्चर्यचकित हो गए और आखिर में हार मान कर सर्वानन्द ने कबीर साहेब की शरण ग्रहण की ।

मीराबाई को शरण में लेना

                                   मीराबाई पहले श्री कृष्णा जी की पूजा करती थी । एक दिन संत रवि दास जी और परमात्मा कबीर जी का सत्संग सुना तो पता चला की श्री कृष्णा जी नाशवान हैं । समरथ अविनाशी परमात्मा अन्य हैं । संत रवि दास जी को गुरु बनाया । फिर आंत में कबीर दास जी को गुरु बनाया । तब मीरा बाई का सत्य भक्ति बीज को बोया गया ।

                           
 
            गरीब, मीरा बाई पद मिली, सतगुरु पीर कबीर ।
                        देह छतां ल्यो लीन हैं, पाया नहीं शरीर ।।

 सदना कसाई का उद्धार


                                 सदना नाम का व्यक्ति एक कसाई का नौकर था । प्रतिदिन 2 से 10 तक बकरा-बकरी,  गाय-भैंस काटता था । उसी से निर्वाह चल रहा था । एक दिन परमेश्वर एक मुस्लमान फ़क़ीर जिन्दा बाबा के रूप में सदना कसाई को मिले उसको भक्ति ज्ञान समझाया । जीव हिंसा से होने वाले पापों से परिचित कराया । सर्व ज्ञान समझा कर सदना कसाई को दीक्षा लेने की प्रबल इच्छा व्यक्त की । परमेश्वर ने कहा की पहले यह कसाई का कार्य त्याग, तब दीक्षा दूंगा । सदना कसाई के सामने निर्वाह की समस्या थी ।
 
               

जिन्दा बाबा को बताई । जिन्दा वेशधारी प्रभु ने कहा की भाई सदना ! कसाई तो कुल 100हैं आपके शहर  में, अन्य 1000व्यक्ति भी निर्वाह कार रहे हैं । आप भी कोइ अन्य कार्य कर  लो । सदना इस कार्य के लिए तैयार नहीं हुआ । अपनी निर्वाह की समस्या आगे रखी । जिन्दा ne कहा की आप हिंसा कम कर दो । सदना ने कहा की मैं मालिक की आज्ञा का अवहेलना  नहीं कर सकता । वहा जितने पशु काटने को कहेँगे, मुझे काटने पड़ेंगे । जिन्दा बाबा ने कहा की आप निर्धारित कर लो की इतने पशुओं से अधिक नहीं काटूंगा चाहे नौकरी त्यागने पड़े,  तो मैं आपको दीक्षा दे दूंगा । सदना कसाई की दीक्षा लेने की इच्छा प्रबल थी । नौकरी छूटने का भय भी कम नहीं था । इसीलिए इस बात पर सहमत हो गया और हिसाब लगाया की प्रतिदिन छोटे-बड़े 10 या 12 पशु ही काटते हैं । यदि कोइ ईद- बकरीद  त्यौहार आता हैं या किसी के विवाह में मांस की पार्टी होती हैं तोह मुश्किल से 50 पशु वध किये जाते हैं । सदना ने कहा की बाबाजी ! मैं पक्का वादा करता हूँ की सौ पशुओ से अधिक नहीं काटूंगा, चाहे नौकरी भी क्यों ना त्यागनी पड़े । जिन्दा बाबा बोले ठीक हैं । सदना को शरण में लिया इस तरह से

तेरह गाड़ी कागज़ो को लिखना 

                                          एक समय दिल्ली के बादशाह ने कहा कि कबीर जी 13(तेरह) गाड़ी कागज़ो को ढाई दिन यानि 60 घंटे में लिख दे तो मैं उसको परमात्मा मान जाऊंगा।

           

 परमेश्वर कबीर जी ने अपनी डंडी उन तेरह गाड़ियों  में रखे कागजों पर घुमा दी। उसी समय सर्व कागजों में अमृतवाणी सम्पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान लिख दिया। राजा को विश्वास हो गया, परन्तु अपने धर्म के व्यक्तियों (मुसलमानों) के दबाव में उन सर्व ग्रंथो को दिल्ली में जमीन में गड़वा दिया।

सूखी टहनी हरि भरी करना 

                                    एक बार जीवा और दत्ता ने संतो की परीक्षा लेने की ठानी की पृथ्वी पर कोइ पूर्ण संत होगा तो उनके चरणामृत से सूखी डाली हरि हो जाएगी । सभी संतो, महंतो, गुरुओं की परीक्षा ली, कुछ में । अंत में जिन्दा महात्मा रूप में प्रकट कबीर साहेब जी का चरणामृत सूखी डाली पर डाला तो उसी समय वहा हरि-भरी हो गई । इसका प्रमाण आज भी गुजरात के भरुच शहर में मौजूद हैं । वहा पेड़ कबीरवट के नाम से जाना जाता हैं ।

                     

          जीवा दत्ता ने सूखे पेड़ पे, लेई परीक्षा भारी ।
              साहेब कबीर के चरणामृत से, हरि हुई वो डाली ।।
            

                         For more information click on the link given below👇

                                  www.supremegod.org

Comments

  1. Yaa According to Every Holy Scriptures Kabir is Supreme God which comes in Every Yugas and Gives us the knowledge about True Spritiual paath

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