भगवान कबीर के चमत्कार

 कबीर साहेब के चमत्कार

                                           आज हम  आपको कबीर साहेब के चमत्कार के बारे में बताएंगे। कबीर साहेब लगभग आज से 600 साल पहले इस धरती पर आये और बहुत सी लीलाएं करके चले गए। कबीर साहेब की लीलाओं का जिक्र कबीर सागर में भी मिलता है। कबीर साहेब के 64 लाख शिष्य थे, यह आपने आप में एक बहुत बड़ी बात है। तो चलिए आज हम आपको कबीर साहेब के कुछ चमत्कार के बारे में बताते है।
             
                                   

  सिकंदर लोधी बादशाह का असाध्य जलन का रोग ठीक 

    करना-

                                               शाम का समय हो गया था ।बीर सिंह को पता था की इस समय साहेब कबीर जी अपने औपचारिकगुरुदेव स्वामी रामानंद जी के आश्रम में ही होते हैं । यहां समय परमेश्वर कबीर जी का वहा मिलने का हैं । बीर देव सिंह बघेल कशी नरेश तथा सिकंदर लोधी दिल्ली के बादशाह दोनों, स्वामी रामानंद जी के आश्रम के सामने खड़े हो गए । वहा जाकर पता चला की कबीर साहेब अभी नहीं आये हैं, आने ही वाले हैं । बीर सिंह अंदर नहीं गए । बाहर सेवक खड़ा था उससे ही पूछा । सिकंदर ने कहा की "तब तक आश्रम में विश्राम कार लेते हैं ।" राजा बीर सिंह ने स्वामी रामानंद जी के द्वारपाल सेवक से कहा की रामानंद जी से प्रार्थना कारो की दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी आपके दर्शन भी करना चाहते हैं और साहेब कबीर का इंतज़ार आपके आश्रम में ही करना चाहते हैं ।सेवक ने अंदर जाकर रामानंद जी को बताया की दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी आये हैं । रामानंद जी मुसलमानो से घृणा करते थे । रामानंद जी ने कहा की मैं इन मुसलमानो की शकल तक नहीं देखता । कह दो की बाहर बठ जायेगा । जब सिकंदर लोधी ने यहां सुना तोह क्रोध में भरकर (क्योंकि राजा में अहंकार बहुत होता हैं और वो भी दिल्ली का बादशाह ) कहा की यह दो कौड़ी का महात्मा दिल्ली के बादशाह का अनादर करता हैं टोटल साधारण मुसलमानो के साथ यह कैसा व्यवहार करता होगा?  इसको मज़ा चखा दू । रामानंद जी अलग आसान पर बठै थे । सिकंदर लोधी ने जाकर रामानंद जी की गर्दन तलवार से काट दी । वापिस चल पड़ा फिर उसको याद आया की मैं जिस कार्य के लिए आया था? और वहा अब पूरा नही होगा । कहा की बीर सिंह देखा मैं क्या जुल्म कर बैठा?  कबीर साहेब के गुरु की हत्या कर दी । मैं बहुत पापी जीव हूँ कह कार आश्रम के बाहर चल पड़े । बाहर जाते वक़्त कबीर जी आश्रम की तरफ आते हुए दिखाई पड़े । बीर सिंह ने  कहा की महाराज जी  मेरे गुरुदेव कबीर  जी आगये । ज्योही कबीर साहेब थोड़े दूर में थे तोह बीर सिंह ने लेट कार दंडवत प्रणाम किया ।




 अब सिकंदर बहुत घबराया हुआ था । बीर सिंह को देखकर तथा सिकंदर लोधी ने भी दंडवत प्रणाम किया । कबीर परमेश्वर जी ने दोनों के सिर पर हाथ रखा और कहा की दो दो नरेश आज मुझे गरीब के पास कैसे आये हुए हैं?  कबीर परमेश्वर जी ने अपना हाथ उठाया भी नहीं था की सिकंदर के जलन का रोग समाप्त हो गया । सिकंदर लोधी की आखों में पानी आगया । (संत के सामने यहां मन भाग जाता हैं और ये आत्मा ऊपर आजाती हैं क्योंकि परमात्मा आत्मा का साथी हैं ।" अंतर्यामी एक तु आत्म के आधार ।" आत्मा का आधार कबीर परमात्मा हैं ।) सिकंदर लोधी ने पैर पाकर कर छोड़ा नहीं और रोता ही रहा । परमेश्वर जानी जान होते हुए भी कबीर साहेब नी दिल्ली के बादशाह सिकंदर लोधी से पूछा क्या बात हैं?  सिकंदर ने कहा की डाटा मैंने घोर अपराध कार दिया । आप मुझे क्षमा नहीं कार सकते । जिस काम के लिए मैं यहां आया था असाध्या रोग तोह आपके स्पर्श मात्र से ठीक हो गया । इस पापी को क्षमा कार दो । कबीर साहेब ने कहा क्षमा टोटल कार दिया पर यह तोह बता हुआ क्या हैं?  सिकंदर ने कहा की आप क्षमा नहीं कर सकते ।  मैंने ऐसा पाप किया हैं । कबीर साहेब ने कहा की क्षमा कार दिया । अब बता क्या कष्ट हैं?  सिकंदर ने कहा की दाता  मुझे पापी ने गुस्से में आकर आपके गुरुदेव का सर कलम कर दिया और फिर सारी कहानी सुनाई कबीर साहेब ने कहा कोइ बात नहीं जो हुआ हैं प्रभु इच्छा  से ही हुआ हैं आप स्वामी रामानंद जी का अंतिम संस्कार करवा कार जाना नहीं तो निंदा के पत्र बनोगे । परमेश्वर कबीर साहेब जी नाराज़ नहीं हुए । सिकंदर लोधी ने बीर सिंह के मुख के तरफ देखा और कहा की बीर सिंह यह तो वास्तव में भगवान हैं 




 कटा हुआ सिर वापस जोड़ना-

                                      एक समय साहेब कबीर अपने भक्त सम्मन के यहाँ अचानक दो सेवकों (कम व शेखफरीद) के साथ पहुँच गए। सम्मन के घर कुल तीन प्राणी थे। सम्मन, सम्मन की पत्नी नेकी और सम्मन का पुत्र सेऊ। भक्त सम्मन इतना गरीब था कि कई बार अन्न भी घर पर नहीं होता था। सारा परिवार भूखा सो जाता था। आज वही दिन था। भक्त सम्मन ने अपने गुरुदेव कबीर साहेब से पूछा कि साहेब खाने का विचार, खाना कब खाओगे? कबीर साहेब ने कहा कि भाई भूख लगी है। भोजन बनाओ। सम्मन अंदर घर में जा कर अपनी पत्नी नेकी से बोला कि अपने घर अपने गुरुदेव भगवान आए हैं। जल्दी से भोजन तैयार है। तब नेकी ने कहा कि घर पर अन्न का एक दाना भी नहीं है। सम्मन ने कहा कि पड़ोस वालों से मांग की जाए। नेकी ने कहा कि मैं मांगने गई थी लेकिन किसी ने भी आटा नहीं दिया। वह आटा होते हुए भी जान बूझ कर नहीं दिया और कह रहे हैं कि आज तुम्हारे घर तुम्हारे गुरु जी आए हैं। आपने कहा था कि हमारे गुरु जी भगवान हैं। आपके गुरु जी भगवान हैं तो आपको माँगने की आवश्यकता क्यों पड़ी? ये ही भर देगें आपके घर को आदि -2 कह कर मजाक करने लगे । सम्मन ने कहा कि आपका स्वागत है आपका चीर गिरवी रख कर तीन सेर आटा ले आता हूँ। नेकी ने कहा यह चीर फटा हुआ है। यह कोई गिरवी नहीं रखता है। सम्मन सोच में पड़ जाता है और अपने दुर्भाग्य को कोसते हुए कहता है कि मैं कितना अभागा हूँ। आज घर भगवान आए और मैं उन्हें भोजन भी नहीं करवा सका। हे परमात्मा! ऐसे पापी प्राणी को पृथ्वी पर क्यों भेजा गया। मैं इतना नीच रहा हूँगा कि पिछले जन्म में कोई पुण्य नहीं किया। अब सतगुरु को क्या मुंह दिखाऊँ? यह कह कर अंदर कोहे में जा कर फूट -2 कर रोने लगा। तब उसकी पत्नी नेकी कहने लगी कि हिम्मत करो। रोवो मत। परमात्मा आ गए। ये ठेस खेचगी। सोचंएगे हमारे आने से तंग आ कर रो रही है। साइमन चुप हो गया। फिर नेकी ने कहा आज रात्रि में दोनों पिता पुत्र जा कर तीन सेर (पुराने बाटो ग्राम के लगभग) आटा लाता है। केवल संतों व भक्तों के लिए।
                                   
                               


तब लड़के से बाउ बोला माँ - गुरु जी कहते हैं चोरी करना पाप है। फिर आप भी मुझे शिक्षा देते हैं कि बेटा कभी चोरी नहीं करना चाहिए। जो चोरी करते हैं उनका सर्वनाश होता है। आज तुम यह क्या कह रही हो माँ? क्या हम पाप करेंगे माँ? नाशवान हो जाएगा। माँ हम चैरासी लाख योनियों में कष्ट करेंगे। एसा मत कहो माँ। माँ तुम मेरी कसम। तब नेकी ने कहा कि पुत्रा तुम ठीक कह रहे हो। चोरी करना पाप है लेकिन पुत्रा हम अपने लिए नहीं बल्कि संतों के लिए करेंगे। नेकी ने कहा बेटा - ये नगर के लोग अपने से बहुत चिड़ते हैं। हमने इनको कहा था कि हमारे गुरुदेव कबीर साहेब (पूर्ण परमात्मा) आए हैं। में उसने एक मृतक गऊ और उसके बच्चे को जीवित कर दिया था जिसके टुकड़े सिंकदर लौधी ने करवाए थे। एक लड़का और एक लड़की को जीवित कर दिया। सिंकदर लौधी राजा का जलन का रोग समाप्त कर दिया और श्री रामानन्द जी (कबीर साहेब के गुरुदेव) जो सिंकदर लौधी ने तलवार से कत्ल कर दिया था वे भी कबीर साहेब ने जीवित कर दिए थे कर रहे थे। यह बात का ये नगर वाले मजाक कर रहे हैं और कहते हैं कि आपके गुरु कबीर तो भगवान हैं आपके घर को भी अन्न से भर देंगे। फिर क्यों अन्न (आटे) के लिए घर में डोलती फिरती हो? बेटा ये नादान प्राणी हैं अगर आज साहेब कबीर इस नगरी का अन्न खाए बिना चले गए तो काल भगवान भी बहुत नाराज हो जाएंगे कि कहीं इस नगरी को समाप्त न कर दे। हे पुत्र! इस अनर्थ को बचाने के लिए अन्न की चोरी करनी है। हम नहीं हैं। केवल अपने सतगुरु और आए भक्तों को प्रसाद बना कर खिलाएगें। यह कह कर नेकी की आँखों में आँसू भर आए और कहा पुत्रा नाटियो मत अर्थात् मना मत करो। इस अनर्थ को बचाने के लिए अन्न की चोरी करनी है। हम नहीं हैं। केवल अपने सतगुरु और आए भक्तों को प्रसाद बना कर खिलाएगें। यह कह कर नेकी की आँखों में आँसू भर आए और कहा पुत्रा नाटियो मत अर्थात् मना मत करो। इस अनर्थ को बचाने के लिए अन्न की चोरी करनी है। हम नहीं हैं। केवल अपने सतगुरु और आए भक्तों को प्रसाद बना कर खिलाएगें। यह कह कर नेकी की आँखों में आँसू भर आए और कहा पुत्रा नाटियो मत अर्थात् मना मत करो। इस अनर्थ को बचाने के लिए अन्न की चोरी करनी है। हम नहीं हैं। केवल अपने सतगुरु और आए भक्तों को प्रसाद बना कर खिलाएगें। यह कह कर नेकी की आँखों में आँसू भर आए और कहा पुत्रा नाटियो मत अर्थात् मना मत करो। इस अनर्थ को बचाने के लिए अन्न की चोरी करनी है। हम नहीं हैं। केवल अपने सतगुरु और आए भक्तों को प्रसाद बना कर खिलाएगें। यह कह कर नेकी की आँखों में आँसू भर आए और कहा पुत्रा नाटियो मत अर्थात् मना मत करो।
 तब अपनी माँ की आँखों के आँसू पौंछता हुआ गाय सेऊ कहने लगा - माँ रो मत, आपका पुत्र आपका आदेश का पालन करेगा। माँ तुम तो बहुत अच्छी हो ना।) अर्ध रात्रि के समय दोनों पिता (सम्मन) पुत्रा (सेऊ) चोरी करने के लिए चले गए।
 एक सेठ की दुकान की दीवार में छेद किया। सम्मन ने कहा कि पुत्रा मैं अंदर जाता हूं। यदि कोई व्यक्ति आया तो धीरे से कह देना मैं तुम्हें आटा पकड़ा दूंगा और ले कर भाग जाना। तब सेऊ ने कहा नहीं पिता जी, मैं अंदर जाऊँगा। यदि मैं पकड़ा भी गया तो बच्चा समझ कर माफ कर दिया जाऊँगा। सम्मन ने कहा पुत्रा अगर तुम पकड़ कर मार दिया तो मैं और तेरी माँ कैसे बचेंगे? सेऊ प्रार्थना करता हुआ छेद द्वार से अंदर की दुकान में प्रवेश कर जाता है। तब सम्मन ने कहा पुत्रा केवल तीन सेर आटा लाना, अधिक नहीं। लड़के सेऊ लगभग तीन सेर आटा अपनी फटी पुरानी चद्दर में बाँध कर चलने लगा तो अंधेरे में तराजू के पलड़े पर पैर रखा गया। जोर दार आवाज हुई जिससे दुकानदार जाग गया और सेऊ को थ-थ बाय पकड़ लिया और रस्से से बाँध दिया। इससे पहले सेऊ ने वह चद्दर में बँधा हुआ आटा उस छेद से बाहर फैंक दिया और कहा पिता जी मुझे सेठ ने पकड़ लिया है। आप आटा ले जाओ और सतगुरु व भक्तों को भोजन करवाना। मेरा ध्यान मत करो।
 आटा ले कर सम्मन घर पर गया तो सेऊ को न पा कर नेकी ने पूछा लड़का कहां है? सम्मन ने कहा कि उससे सेठ जी ने पकड़ कर थम्ब से बाँध दिया। तब नेकी ने कहा कि तुम वापिस जाओ और लड़के सेऊ का सिर काटो। क्योंकि लड़का को पहचान कर अपने घर पर लाएंगे। फिर सतगुरु को देख कर नगर वाले सागा कि ये हैं जो चोरी करवाते हैं। हो सकता है सतगुरु देव को परेशान करें। हम पापी प्राणी अपने दाता को भोजन के स्थान पर कैद न दिखाते हैं। यह कह कर माँ अपने बेटे का सिर काटने के लिए अपने पति से कह रही है कि वह भी गुरुदेव जी के लिए है। सम्मन ने हाथ में कर्द (लम्बा छुरा) लिया और दुकान पर जा कर कहा सेऊ बेटा, एक बार गर्दन बाहर निकाल दी। कुछ जरूरी बातें हैं। कल तो हम नहीं मिलेंगे। हो सकता है ये आपको मरवा दें। तब सेऊ उस सेठ (बनिए) से कहता है कि सेठ जी बाहर मेरा बाप खड़ा है। कोई जरूरी बात करना चाहता है। कृप्या द्वारा मेरे रस्से को इतना ढीला कर दो कि मेरी गर्दन छेद से बाहर निकल जाए। तब सेठ ने उसकी बात को स्वीकार करके रस्सा इतना ढीला कर दिया कि गर्दन आसानी से बाहर निकल गई। तब सेऊ ने कहा पिता जी मेरी गर्दन काट दो। अगर तुम मेरी गर्दन नहीं काटोगे तो तुम मेरे पिता नहीं बनोगे। सम्मन ने एक दम कर्द मारी और सिर काट कर घर ले गया।
 सेठ ने लड़के का कत्ल हुआ देख कर उसके शव को घसीट कर के साथ ही एक पजावा (ईडीएस रिक का भट्ठा) उस खण्डहर में डाल गया था। जबकी ने सम्मन से कहा कि तुम वापिस जाओ और लड़के का धड़ भी बाहर निकाल दूंगा। जब सम्मन की दुकान पर उस समय तक सेठ ने उस दुकान की दीवार के छेद को बंद कर लिया था। सम्मन ने शव कीे घसीट  को देखते हुए शव के पास पहुँच कर उसे उठा लाया। ला कर अंदर कोहे में रख कर ऊपर पुराने कपड़े (गुदड़) डाल दिए और सिर को अलमारी के ताख (एक हिस्से) में रख कर खिड़की बंद कर दी। कुछ समय के बाद सूर्य उदय हुआ। नेकी ने स्नान किया। फिर सतगुरु व भक्तों का खाना बनाया। फिर सतगुरु कबीर साहेब जी से भोजन करने की प्रार्थना की।
 नेकी ने साहेब कबीर व दोनों भक्त (कम और शेख फरीद), तीनों के सामने भावनाओं के साथ भोजन खिलाया। साहेब कबीर ने कहा कि इसे छह: दौनों में डाल कर आप तीनों भी साथ बैठो। यह प्रेम प्रसाद पाओ। बहुत प्रार्थना करने पर भी साहेब कबीर नहीं माने तो छः दौनों में प्रसाद परोसा गया। पांचों प्रसाद के लिए बैठ गए।

तब साहेब कबीर ने कहा -
आओ सेऊ जीम लो, यह प्रसाद प्रेम।
शीश कटत हैं चोरों के, परिस्थितियों के नित्य क्षेम ।।


साहेब कबीर ने कहा कि सेऊ आओ भोजन पाओ। सिर तो चोरों के कट्टे हैं। संतों (भक्तों) के नहीं। उन्हें तब क्षमा होती है। साहेब कबीर ने इतना कहा था कि उसी समय से बाउ के धड़ पर सिर लग गया था। कटे हुए का कोई निशान भी गर्दन पर नहीं था और पेंटेंट (पंक्ति) में बैठ कर भोजन करने लगा। बोलो कबीर साहेब (कविरमितौजा) की जय। सम्मन और नेकी ने देखा कि गर्दन पर कोई चिन्ह भी नहीं है। लड़का जिंदा कैसे हुआ? अंदर जा कर देखा तो वहां शव और शीश नहीं था। केवल रक्त के छींट लगे हुए थे जो इस पापी मन के संधि को समाप्त करने के लिए प्रमाण बकाया था। सत साहिब ।। ऐसे -2 बहुत लीलाएँ साहेब कबीर (कविरग्नि) ने की हैं जिनसे यह स्वसिद्ध है कि ये ही पूर्ण परमात्मा हैं।

मृत गाय को जीत करना-

                                सिकंदर लोधी ने एक गऊ के तलवार से दो टुकड़े कर दिये। गऊ को गर्भ था और बच्चे के भी दो टुकड़े हो गए। तब सिकंदर लोधी राजा ने कहा कि कबीर, यदि तू खुदा है तो इस गऊ को जीवित कर दे अन्यथा तेरा सिर भी कलम कर (काट) दिया जाएगा। साहेब कबीर ने एक बार हाथ गऊ के दोनों टुकड़ों को लगाया तथा दूसरी बार उसके बच्चे के टुकड़ों को लगाया। उसी समय दोनों माँ-बेटा जीवित हो गए। साहेब कबीर ने गऊ से दूध निकाल कर बहुत बड़ी देग (बाल्टी) भर दी
           
                             

                       गऊ अपनी अम्मा है, इस पर छुरी न बाह।
                           गरीबदास  घी दूध को, सब ही आत्म खाय।।
          चुटकी तारी थाप दे, गऊ जिवाई बेगि।
        गऊ अपनी अम्मा है, इस पर छुरी न बाह।
                     गरीबदास दूझन लगी, दूध भरी है देग।
       


मृ
त लड़के कमाल को जीवित करना-

                                                  शेखतकी महाराज सिकंदर के मुख चढ़ाये फिर रहा था । सिकंदर ने पूछा की क्या बात हैं पीर जी?  शेखतकी ने कहा की क्या तुझे बात नहीं मालूम?  सिकंदर ने पूछा की क्या बात हैं?  शेखतकी ने कहा की इस कबीर काफिर को साथ किसलिए रखा हैं? सिकंदर ने कहै की यह तोह भगवान (अल्लाह ) हैं । शेखतकी ने कहा की अच्छा अल्लाह अब आकार में आने लग गया । अल्लाह कैसे हैं?  सिकंदर ने कहा की पहले तो अल्लाह ऐसे की मेरा रोग ऐसा था की किसी से भी ठीक नहीं हो पा रहा था । इस कबीर प्रभु ने हाथ ही लगया था मैं स्वस्थ हो गया । सिकंदर ने फिर कहा की दूसरा भगवान ऐसा हैं की मैंने उनके गुरुदेव का सर काट दिया था और उन्होंने उसे मेरी आखों के सामने तुरंत जीवित कार दिया । शेखतकी ने कहा की अगर यहां अल्लाह हैं टोटल इसकी परीक्षा लूंगा । यदि कबीर जी मेरे सामने कोइ मुर्दा जीवित कार दे तोह इसे अल्लाह मान लूंगा । नहीं तोह दिल्ली जाकर मैं ओरत मुस्लमान समझ को करह दूंगा की यहां राजा हिन्दू हो गया हैं । सिकंदर लोधी डर गया की कही ऐसा ना हो की यहां जाते ही राज पलट दे । राजा ने शेखतकी से कहा की आप कैसे प्रसन्न  होंगे । शेखतकी ने कहा की मैं तब प्रसन्न होऊंगा जब मेरे सामने यहां कबीर कोइ मुर्दा जीवित कर दे ।साहेब से प्रार्थना हुई तोह साहेब ने कहा ठीक हैं ।( कबीर साहेब ने सोचा की यहां अनाड़ी आदमी शेखतकी मेरी बात मान गया तोह आधे से ज्यादा मुस्लमान इसकी बात स्वीकार करते हैं । क्योंकि यहां दिल्ली के बादशाह का पीर हैं और यहां सही ढंग से मुसलमानो को बता देगा टोटल बेचारी यहां भोली आत्माये इन गुरुओं पर आधारित होती हैं
                       
                 

इसीलिए कहा की शेखतकी ढूंढ ले कोइ मुर्दा । सुबह एक 10-12 वर्ष की आयु के लड़के का शव पानी में तैरता  हुआ आ रहा था ।कबीर साहेब ने कहा पहले आप प्रयत्न  करो, कही फिर पूछे नंबर बनाओ । उपस्थित मंत्रियो तथा सैनिको ने कहा की पीर जी पहले आप कोशिस करो । शेखतकी जंतर मंतर करता इतने में वहा मुर्दा तीन  कदम आगे चला गया । कबीर साहेब बोले महात्मा जी आप बैठ जाओ शांति करो । कबीर साहेब ने उस मुर्दे को हाथ से वापिस आने का संकेत किया ।बारह वर्ष बच्चे का मृत शरीर पानी के बहाव से विपरीत चलकर कबीर जी के सामने आकर रुक गया। कबीर साहेब ने कहा की हे जीवातमा जहाँ कही भी हैं कबीर हुक्म से मुर्दे में प्रवेश कर और बाहर आ । कबीर साहेब ने इतना कहा की शव में कम्पन हुई तथा जीवित होकर बाहर आगया ।कबीर साहेब के चरणों में दंडवत प्रणाम किया ।
ये कबीर साहब की कुछ चमत्कार थे जो 600 वर्ष पूर्व किए थे।
               

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Comments

  1. स्वामी रामानन्द जी को जीवत करना
    दिल्ली के बादशाह सिकन्दर लोधी ने स्वामी रामानंद जी की गर्दन तलवार से काट दी थी कबीर साहेब जी ने देखा कि रामानन्द जी का धड़ कहीं और सिर कहीं और पड़ा था तब कबीर साहेब ने मृत शरीर को प्रणाम किया
    और कहा कि गुरुदेव उठो
    दूसरी बार कहते ही सिर अपने आप उठकर धड पर लग गया और रामानंद जी जीवित हो गए

    Ossam..,...

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  2. परमात्मा के चमत्कार अदभुत होते हैं 🙏🙏

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