कबीर साहेब का परिचय: - विक्रम संवत 1455 (सं। 1398) ज्येशठ मास की पूर्णिमा सुबह-सुबह ब्रह्ममुहूर्त में वह पूर्णदेव कबीर (कविदेव) जी स्वयं अपने मूल स्थान सतलोक से आये कशी में लहर तरलेब के अंदर कमल के फूल पर एक लड़के का रूप धारण किए हुए हैं। कबीर साहेब जी चारो युग में आते हैं: - सतयुग में सातसुक्रत कह तेरा, त्रेता नाम मुनिंद्र मेरा। ड्वापर में करुणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया ।। सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारो युग प्रमाण। झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान ।। "सतयुग कविदेव (कबीर साहेब) सत सुकृत नाम से प्रकट हुए" पूर्ण प्रभु कबीर जी (कविदेव) सतना में सत सुकृत के नाम से स्वयं प्रकट हुए थे | उस समय गरुड़ जी, श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, और श्री शिव जी आदि को सत्य ज्ञान था श्री मुनि महर्षि जी को भी तत्वज्ञान समझाना चाहा था | लेकिन श्री मुनि जी ने भगवान के ज्ञान को सत ना जान कार ब्रह्मा जी से सुने वेद ज्ञान पर आधारित होकर और अपन...