दहेज प्रथा

दहेज प्रथा के कारण

इंसान जब लालच की गहरी खाई में गोते लगाता है, तो वह इंसानियत को रौंदते हुए शैतान की भाषा बोलने लगता है। 'दहेज प्रथा' इसी का एक अप्रितम उदाहरण है।


दहेज प्रथा का इतिहास तो काफी पुराना है लेकिन मौजूदा वक्त में यह एक नामक बिमारी का रूप ले चुका है। अब तक हमारे समाज में ना जाने कितने घरों को इसने बर्बाद कर दिया है।

समाज के तमाम बुद्धिजीवी वर्ग आज दहेज प्रथा को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत के किसी भी वर्ग के परिवार में आपको इसका विचार मिल जाएगा। खासतौर पर समृद्ध परिवारों में दहेज लेने की अधिक होड़ लगी रहती है।






अब इसका प्रभाव गाँवों, शहरों और महानगरों में भी दिखने लगा है। लोग यह समझ ही नहीं पाते कि दहेज लेना और देना दोनों ही गुनाह है। भारतीय दंड संहिता भी अपराधी का सहयोग करने वाले को अपराधी मानती है।
जब पाश्चत्य संस्कृति की बात आती है, तो हम अंग्रेज़ों को कोसते हुए कहते हैं कि उन्होंने हमारी सभ्यताओं को बिगाड़ दिया है लेकिन हम उनकी अच्छीईयों का ज़िक्र करना ही नहीं चाहते हैं। हम यह तो नहीं कहते हैं कि अंग्रेज़ क्यों नहीं दहेज लेते थे।

एक पिता बहुत लाड़-प्यार से अपनी बेटी को पढ़ाता है, फिर उसके लिए अच्छे वर की तलाश करता है। सब सेट हो जाता है लेकिन बात अटकती है दहेज पर, वर पक्ष इसके लिए अनेकों रिश्तेदारों और पड़ोसियों के उदाहरण देते हुए कहते हैं कि फलां घर से इतने पैसे दिए जा रहे हैं, हम तो कुछ नहीं मांग रहे हैं।
वास्तव में यह सब अप्रत्यक्ष रूप से मांग ही होती है और यदि निश्चित राशि नहीं मिलती है, तो बारात के वक्त पता नहीं क्या-क्या खेल खेले जाते हैं। अगर वहाँ भी छुटकारा मिल जाए तो आगे ससुराल में लड़की को सज़ा हो जाती है, ताने दिए जाते हैं और कभी-कभी तो जान तक ले ली जाती है।
क्या सचमुच यही हमारे मूल्य हैं, जिस संस्कृति का ढोल हम सभी संसार में पिटते हैं, वो क्या यह सिखाती है कि किसी अन्य परिवार की बेटी को हद की सारी बंदिशें तोड़ते हुए बस सताओ।

बेटियां दहेज की आग में जलना तभी बंद होगी जब हम बेटी और बेटों को एक समान समझेंगे।

यह अंतर अध्यात्म विज्ञान से समाप्त होगा :-

जैसे संत रामपाल जी महाराज अपने अनुयायियों की शादी साधारण तरीके से करते हैं उसमें ना कोई दहेज लेता ना कोई दहेज देता है ना कोई पाखंड किया जाता है केवल परमात्मा की वाणी बोलकर शादी कर दी जाती है।


जैसे श्री देवी दुर्गा जी ने अपने तीनों पुत्रों (श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, श्री शिव जी) का विवाह किया था। संत रामपाल जी महाराज के अनुयाई ऐसे ही करते है। 17 मिनट की असुर निंकदन रमैणी है फेंरो के स्थान पर उसको बोला जाता है जो करोड़ गायत्री मंत्र (ॐ भूर्भव:...) से उत्तम तथा लाभदायक है। जिसमें विश्व के सर्व देवी-देव तथा पूर्ण परमात्मा का आह्वान तथा स्तुति - प्रार्थना है। जिस कारण से सर्व शाक्तिया उस विवाह वाले जोड़े की सदा तथा सहायता करते हैं। इससे बेटी बची रहेगी। जीने की राह सुगम हो जाएगी।

                                                       
विवाह में प्रचलित वर्तमान परंपर का त्याग :-

विवाह में व्यर्थ का खर्चा त्यागना पड़ेगा। जैसी बेटी के विवाह में बड़ी बारात का आना, दहेज देना, यह व्यर्थ परंपरा है। जिस कारण से बेटी परिवार पर भार मानी जाने लगी है और उसको गर्भ में ही मारने का सिलसिला शुरू है जो माता-पिता के लिए महापाप का कारण बन जाता है। बेटी देवी का स्वरूप है।हम कुपरम्पराओं ने बेटी को दुश्मन बना दिया। श्री देवीपुराण के तीसरे स्कदं मे प्रमाण है कि इस ब्रह्माण्ड के प्रारम्भ में तीनों देवताओं(श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी, तथा श्री शिव जी) का जब इनकी माता श्री दुर्गा जी ने विवाह किया, उस समय न कोई बाराती था, न कोई भाती था। न कोई भोजन - भण्डारा किया गया था। न डी.जी बजा था, न कोई नृत्य किया गया था। श्री दुर्गा जी ने अपने बड़े पुत्र श्री ब्रह्मा जी से कहा कि हे ब्रह्मा! यह सावित्री नाम की लड़की तुझे तेरी पत्नी रूप में दी जाती है। इस ले जाओ और अपना घर बसाओ। इसी प्रकार अपने बीच वाले पुत्र विष्णु जी से लक्ष्मी जी और छोटे बेटे श्री शिव जी को पार्वती जी को देकर कहा कि ये तुम्हारी पत्नियां हैं। इनको ले जाओ और अपना - अपना घर बसाओ। तीनों अपनी - अपनी पत्नियों को लेकर अपने - अपने लोक में चले गए जिससे विश्व का विस्तार हुआ।







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Comments

  1. Bhut acha g
    Saint Rampal ji bdiya Kam kre h

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  2. दहेज एक दानव है और सामाजिक बुराई इसको खत्म करना आज के युवा के कंधों पर है आज का युवा इस बात को अगर अपने जीवन में उतारे तो इसको खत्म किया जा सकता है

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