संस्कारों का पतन
संस्कारों का पतन 🙏😔...
वर्तमान में समाज सभ्यता की भाग दौड़ में अपने संस्कारों को पूर्ण रूप से भूल गया संस्कार ही भक्ति का श्रेष्ठ पाए हैं भक्ति के नियम आवश्यक है लेकिन बारी देशों की संस्कृति को देखकर भारतीय अपने पूर्वजों की दी हुई विरासत अपने संस्कारों को भूल चुका है प्रभु से अनजान है
मनुष्य को यह वर्तमान में अहसास की नहीं हे की जीवन में खुदा का क्या महत्व है हम सभी को भक्ति करनी चाहिए यही हमारे जीवन का उद्देश्य हेमनुष्य को यह वर्तमान में अहसास की नहीं हे की जीवन में खुदा का क्या महत्व है हम सभी को भक्ति करनी चाहिए यही हमारे जीवन का उद्देश्य हेपरन्तु संस्कार के विनाश स्वरूप सब अस्त व्यस्त हो गया हे हम बाहरी सभ्यता को ग्रहण करने लग गए ना जाने क्यों बार बार भुल जाते हे की दुखो का अंत प्रभु।
जैसे :-
विवाह के पश्चात् ससुराल में कुछ लड़कियाँ सर्व श्रृंगार करती हैं । सज - धजकर गलियों से गुजरती हैं । अजीबो - गरीब हरकत करती हैं । असहज लगने वाले भड़कीले - चमकीले वस्त्र पहनकर बाजार या खेतों में या पानी लेने नल या कुएं पर जाती हैं । उनका उद्देश्य क्या होता है ? स्पष्ट है कि अपने पति के अतिरिक्त अन्य से पुरूषों को अपनी ओर आकर्षित करना । अपनी सुंदरता तथा वैभव का प्रदर्शन करना जो एक अच्छी बहू - बेटी के लक्षण नहीं हैं । यदि कहें कि पति को प्रसन्न करने हो के लिए ऐसा करती हैं तो वे घर तक ही सीमित रहती तो अच्छा होता , परंतु ऐसे लक्षण मन में दोष के प्रतीक होते हैं
उसकी प्रशंसा सभ्य समाज किया करता है अन्य युवाओं को उसका उदाहरण बताते हैं ।
यदि पैट्रोल को चिंगारी नही मिलेगी तो विस्फोट नही होता।
माता पिता की सेवा करना परम कर्तव्य :-
माता पिता प्रत्येक माता - पिता की तमन्ना होती है कि मेरी संतान योग्य बने । समाज में बदनामी न ले । अच्छे चरित्र वाली हो , आज्ञाकारी हो । वृद्धावस्था में हमारी सेवा करे । हमारी बहु हमारे कहने में चलने वाली आए । समाज में हमारी इज्जत रखे । वृद्धावस्था में हमारी सेवा करे । प्यार से व्यवहार करे । सत्ययुग , त्रेता , द्वापर तक यह मर्यादा चरम पर रही । सब सुखी जीवन जीते थे । कलयुग में कुछ समय तक तो ठीक रहा , परंतु वर्तमान में स्थिति विपरीत ही है । इसे सुधारने का उद्देश्य लेखक ( रामपाल दास ) रखता है । आशा भी करता हूँ कि भगवान की कृपा ज्ञान के प्रकाश से सब संभव हो जाता है , हो भी रहा है और होगा , यह मेरी आत्मा मानती है ।माता का संतान के प्रति प्यार : एक लड़के का पिता मृत्यु को प्राप्त हो गया । उस समय वह 10-11 वर्ष । माता ने अपने इकलौते पुत्र की परवरिश की । माता तथा पिता दोनों का माता जी ने दिया कि कहीं पुत्र को पिता का अभाव कष्ट न दे । लड़का युवा होकर शराब का आदी हो गया तथा वैश्या गमन करने लगा । माता से नित्य रूपये । कर और आवारागर्दी में उड़ाए । एक दिन माता के पास पैसे नहीं थे । शराब के में माता को पीटा तथा वैश्या के पास गया । उस दिन पैसे नहीं थे तो वैश्य वर्ष कहा कि अपनी माता का दिल निकाल ला । उल्टा घर आया , माता बेहोश थी ।। छुरा में मारकर माता का दिल निकालकर चल पड़ा । नशे में ठोकर लगी और गिर गया माता के दिल से आवाज आई कि बेटा ! तेरे को चोट तो नहीं लगी ।
नशे से बना शैतान वैश्या के पास माता का दिल लेकर पहुंचा तो वैश्य दिया कहा कि जब तू अपनी माता का हितैषी नहीं है तो मेरा क्या होगा ? किसी के बहकावे में आकर तू मुझे भी मार डालेगा । मेरे को तो तेरे से पीछा छुड़ानाथ पत्नी तू अब निर्धन हो गया है , मेरे किस काम का । इसलिए यह शर्त रखी थी . तु माता का दिल निकाल नहीं सकता क्योंकि वह तेरे को कभी किसी वस्तु के प्यार का मना नहीं करती थी ।
हे शैतान ! चला जा मेरी आँखों के सामने से । यह कहकर वैश्या ने उसे घर से बाहर धक्का देकर द्वार बंद कर लिया । वह शैतान घर माता के शव पर विलाप करने लगा । कहा कि माता जी ! हो सके तो भगवान कर दिया दरबार में भी मुझे बचाना । आवाज आई कि बेटा ! कुछ नहीं हुआ , बस तेरे के को राजा ने फाँसी की सजा दी । देखना चाहती हूँ । उसी समय नगर के लोग आए । थाने में सूचना दी । उस अपराधी को राजा ने फांसी की सजा दी ।
राजा ने फाँसी चढ़ाने से पूर्व उसकी अंतिम इच्छा जानी तो उस लड़के ने कहा कि कुछ नागरिकों को बुलाया जाए , मैं अपनी कारगुजारी को सबके साथ साझा करना चाहता हूँ । नगर के व्यक्ति आए । उस लड़के ने अपना जुल्म कबूला और बताया कि मैंने उपरोक्त जुल्म किया । मेरी माँ की आत्मा अंतिम समय में भी मेरे सुखी रहने की कामना करती रही । मेरे को नशे ने शैतान बना दिया मैंने वैश्या गमन करके समाज को दूषित किया । आप लोग मेरे से नसीहत लेनां जो घोर पाप मैंने अपनी माता जी को परेशान करके किया , कोई मत करना माता पिता अपने जैसी हमदर्द संसार में पत्नी भी नहीं हो सकती , भले ही वह कितनी ही नेक हो तो माता स्वयं उसके पेशाब से भीगे ठण्डे वस्त्र पर लेटती है , बच्चे के नीचे सुखा भी कर पेटभर माता अपने बेटा - बेटी को इतना प्यार करती है कि सर्दियों में बच्चा पेशाब कर देता है तो माता स्वय उसके पेशाब से भीगे ठण्डे वस्त्र पर लेटती है, बच्चे के नीचे सुखा बिछौना कर देती है । यदि बच्चा भूख से रो रहा होता है तो खाना बीच में छोड़कर उसे पहले अपना दूध पिलाकर शांत करती है ।
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